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दागी IPS अफसर को ही शिवराज सरकार ने सौंपी थी घोटाले की जांच






 


अ नोखी आवाज न्यूज़ भोपाल। लोकसभा चुनाव 2019 में कालेधन के इस्तेमाल होने की आयकर रिपोर्ट सामने आने के बाद से प्रदेश की सियासत में आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो चुका है। पूर्ववर्ती कमलनाथ सरकार के समय में पड़े इस आयकर छापों में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के करीबी अफसरों व नेताओं के नाम होने से वर्तमान बीजेपी सरकार हमलावर है लेकिन अब कांग्रेस ने भी पटलवार किया है।



कांग्रेस ने बीजेपी के आरोप के जवाब में ई-टेंडरिंग घोटाले का मुद्दा उछाल दिया है। दो साल पहले हुए इस घोटाले की फाइल ईओडब्ल्यू में ठंडे बस्ते में पड़ी है। न तो कमलनाथ सरकार ने जांच में गंभीरता से लिया और न ही मौजूदा शिवराज सरकार में कोई एक्शन दिखाई दे रहा है।


इस रिपोर्ट का संबंध आयकर छापों से जुड़ा है, क्योंकि जिस आईपीएस अफसर वी मधुकुमार का नाम सीबीडीटी की रिपोर्ट में आया है, शिवराज सरकार में उन्हें ही ई-टेंडरिंग घोटाले की जांच सौंपी गई थी।  पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने शनिवार को शिवराज सरकार के पिछले कार्यकाल में हुए इस ई-टेंडर मामले को लेकर आरोप लगाया कि जो अफसर ई टेंडरिंग घोटाले की जांच में शामिल थे, उन्हें फंसाया जा रहा है।



उन्होंने तत्कालीन आईटी डिपार्टमेंट के प्रमुख सचिव मनीष रस्तोगी को लेकर भी कहा कि इस घोटाले को उजागर करने वाले अफसर को सीएम ऑफिस की कमान सौंपी गई है। बता दें कि रस्तोगी ने जब ई-टेंडरिंग घोटाला पकड़ा था, उस दौरान वे एक माह के अवकाश पर चले गए थे।


इस दौरान पीएचई के प्रमुख सचिव प्रमोद अग्रवाल को विभाग की कमान दी गई थी, जबकि घोटाले पीएचई विभाग में ही हुए थे। खास बात यह है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने ई-टेंडर घोटाले को बड़ा मुद्दा बनाया था। कांग्रेस ने आरोप लगाए थे कि कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए ऑनलाइन टेंडर में टेंपरिंग की गई, लेकिन 15 माह की कमलनाथ सरकार के दौरान इस घोटाले की जांच में तेजी नहीं आई थी।


इस घोटाले की जांच शिवराज सरकार में तत्कालीन मुख्य सचिव बीपी सिंह ने सितंबर 2018 में ईओडब्ल्यू को सौंप दी थी। उस समय ईओडब्ल्यू के महानिदेशक वी. मधुकुमार थे, जिनका नाम लोकसभा चुनाव के दौरान कालेधन के लेन-देन की सीबीडीटी की जांच रिपोर्ट में सामने आया है।



पीएचई ने वॉटर सप्लाई स्कीम के 3 टेंडर 26 दिसंबर 2017 को जारी किए थे। इनमें सतना के 138 करोड़ और राजगढ़ जिले के 656 और 282 करोड़ के टेंडर थे। 2 मार्च 2018 को टेंडर टेस्ट के दौरान जल निगम के टेंडर खोलने के लिए अधिकृत अधिकारी पीके गुरु के इनक्रिप्शन सर्टिफिकेट से डेमो टेंडर भरा गया।


25 मार्च को जब टेंडर लाइव हुआ तब इस इनक्रिप्शन सर्टिफिकेट के जरिए कथित तौर पर फर्जीवाड़े को अंजाम दिया गया। इन दो टेंडरों में बोली लगाने वाली दूसरे नंबर पर रही एक निजी कंपनी ने इस मामले में शिकायत की।