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मेयर की सामान्य सीट के बाद बरसाती मेढक की तरह निकले भाजपा में दावेदार

अनोखी आवाज@खरी खरी

नीरज द्विवेदी "राज"

आज तो मैं खरी-खरी कहता हूं बुरा नहीं लगना चाहिए क्योंकि मैं जो देखता और सुनता हूं  वही कहता हूं यदि फिर भी बुरा लगता है तो मैं क्या करूं..?


वक्त पड़ने पर गधे को भी बाप बनाना पड़ता है यह तो सुना था लेकिन बेवक्त कोई गधा ही किसी को अपना बेटा बना ले यह कभी ना सुना ना देखा..?

मध्यप्रदेश में जल्दी ही नगरी निकाय के चुनाव होने वाले हैं हालांकि तारीख का ऐलान अभी नहीं हुआ है। राजनीतिक पंडित सहित तमाम लोग अपने-अपने बुद्धि-विवेक के अनुसार गणित बैठा रहे हैं लेकिन जिस तरह से हलचल है उसको देखकर मेरा अनुमान है कि फरवरी अंत तक कुछ न कुछ हम सबके सामने देखने को मिलेगा। खैर चुनाव जब होंगे तब लेकिन सिंगरौली जिले में महापौर के लिए जिस तरह से सामान्य सीट का आरक्षण हुआ है वह भाजपा के लिए गले की फांस बनता दिख रहा है ऐसा इसलिए क्योंकि महापौर के दावेदार एक दो नहीं बल्कि दर्जन से भी ज्यादा लोग हैं

कुल मिलाकर कहा जाए कि जिस तरह से मेंढक जो कि सिर्फ बरसात में ही बाहर आते हैं फिर बारिश के बाद दुबक लेते हैं ऐसा ही आलम इन दावेदारो का है हल्की सी बारिश में टर्र-टर्र करते नजर आ रहे हैं, चुनाव के बाद पुनः बिल में दुबक जाएंगे।

बात कुछ यूं है कि जिनको भाजपा के रीति- नीति का रत्ती भर ज्ञान भी नहीं है ऐसे लोग भी जीत का दावा कर हंसी के पात्र बन रहे हैं। आश्चर्य तो तब हो जाता है जो लोग सुबह शाम मेहनत करते हैं तो चूल्हा जलता है ऐसे लोग भी दावेदारी पेश कर रहे हैं उन्हें क्या पता यह जनता है गांधीजी की मुस्कान और जाम के प्याले के बिना कुछ नहीं होने वाला।

हालांकि जब ऐसे लोग दावेदारी कर सकते हैं फिर तो भू- माफिया,चुनावी फंडिंग करने वाले,चाटुकार और दलालों का तो दावेदारी करने का पूरा अधिकार है। खैर मुझे क्या सब करें दावेदारी लेकिन जब टिकट अच्छे लोगो को मिलता तो ठीक की उम्मीद की जा सकती थी,परंतु भू माफिया,कोल माफिया,दलबदलू सहित इनसे जुड़े लोगों को अवसर मिलेगा तो निश्चित ही इनके जैसे लोगो का ही विकास होगा और हमेशा की तरह जनता का खून चूसा जाएगा।

ऐसे लोग जो 5 वर्ष तक कुर्सी पर जमे रहे और विकास के नाम पर 2% से लेकर 5 से 7% तक का कमीशन बटोरे,ऐसे भी लोग  जनता से अपेक्षा और उम्मीद करते हैं इन्हें शर्म आनी चाहिए। समझ नहीं आता क्या मुंह लेकर जनता के बीच जाएंगे... जा भी सकते हैं क्योंकि यथा राजा तथा प्रजा। 5 वर्षों में विकास के नाम पर जनता का खून चूसकर करोड़ो दबाकर बैठे हैं, जिसके कारण इन सबका हौसला बुलंद है होगा भी क्यों न गुलाबी कागजो की खनक भी क्या चीज होती है। मुद्दे की बात करे तो जिस पाण्डेय जी पर कुछ चाटुकार विचार कर रहे है यदि उन्हें नोटों की खनक से टिकट मिल भी गया तो नाव मझदार में भी डूब सकती है। खैर मुझे क्या जिसको देना हो...जीतने में देना हो दे।

सबको मुफ्त की सलाह देता हूं इसलिए मेढ़क की तरह फुदक रहे इन नेताओं को भी दे दु लेकिन ये नेता है बड़े-बड़े मंच पर जनता को खूब लुभावने वादे करते है...जनता को मूर्ख बनाते है ऐसे लोगो को क्या सलाह दू...बस इतना कहूंगा कि बेवक्त कोई गधा किसी को अपना बेटा न बना ले।