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स्कूल भवन की लागत दो लाख, किराया हो गया ढाई लाख

 



आदिवासी डिंडौरी जिले में 13 साल से सरकारी प्राइमरी स्कूल एक निजी आवास के बरामदे में लग रहा है। हैरत की बात तो यह है कि वर्ष 2007 में ही स्कूल भवन दो लाख की लागत से बनाने की स्वीकृति मिली थी, लेकिन 13 साल बाद भी स्कूल भवन अधूरा है। जितनी राशि से स्कूल भवन का निर्माण होना था उससे कहीं अधिक ढाई लाख रुपये शासन को किराया का भुगतान करना है। डिंडौरी के पहुंच विहीन आदिवासी ग्राम दुनियामाल के स्कूल का यह हाल सरकारी व्यवस्था की पोल खोल रहा है।


प्रशासनिक लापरवाहीः वर्तमान में स्थिति यह है कि प्रशासनिक लापरवाही से 13 साल बाद भी भवन अधूरा है। खास बात यह है कि निजी घर के मालिक गोपाल सिंह को किराया मिला नहीं है। गोपाल सिंह को 1756 रुपये मासिक किराया कलेक्टर ने वर्ष 2018 में जारी भी कर दिया है। आदेश के मुताबिक गोपाल को शासन से ढाई लाख रुपये से अधिक लेना है।।


 


पहल वह भी अधूरी : शिक्षा विभाग के अधिकारियों का आरोप है कि प्राइमरी स्कूल के शिक्षक उदय सिंह ने निर्माण की राशि तो पूरी निकाल ली, लेकिन भवन निर्माण अधूरा ही छोड़ दिया। लगभग 12 साल बाद एक बार फिर भवन निर्माण की प्रक्रिया शुरू तो हुई, लेकिन हकीकत यह है कि अभी भी भवन के अंदर न तो फर्श हुआ न भवन की छपाई।


16 छात्र पढ़ रहेः डिंडौरी के ग्राम पंचायत बूढन के पोषक ग्राम दुनियामाल में प्राइमरी स्कूल वर्ष 2007 से गांव के दिव्यांग गोपाल सिंह के घर पर संचालित हो रहा है। वर्तमान में स्कूल में 16 बच्चे हैं। जनपद सदस्य राजेश कुशराम ने बताया कि मूलभूत सुविधाओं के अभाव में संचालित स्कूल में कई चुनौती हैं, जिम्मेदार अधिकारी ध्यान नहीं दे रहे हैं।।



प्राइमरी स्कूल दुनियामाल का भवन 2007 में स्वीकृत हुआ था, लेकिन शिक्षक ने बिना भवन निर्माण पूरा कराए राशि निकाल ली थी। भवन न होने से गांव में कक्षाएं गोपाल सिंह के आवास में लग रही हैं। भवन अधूरा है, किराया का भुगतान शासन स्तर से होना है।


राघवेंद्र मिश्रा, डीपीसी व जिला शिक्षा अधिकारी डिंडौरी।।