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एनसीएलकर्मी पर मेहरबान जयन्त SOP..? सिक्योरिटी ने रंगेहाथ पकड़ा फिर भी नही हुई कार्यवाही

 



 कबाड़ की बिक्री की फिराक में था एनसीएलकर्मी,मामले में लीपापोती की चर्चा


नोखी आवाज़ सिंगरौली। ( आशीष पांडे/ पंकज तिवारी) जैसा व्यक्ति वैसा कानून ऐसा हाल है ऊर्जाधानी का गलती अथवा गुनाह सामान्य व्यक्ति करता है तो उसकी दंड प्रक्रिया अगल है वही यदि रसूखदार करता है तो उसकी प्रक्रिया अगल है। ऐसा ही कुछ मामला एनसीएल की जयन्त परियोजना अन्तर्गत सामने आया है। जहा बताया जा रहा है कि लाखों रुपये प्रतिमाह पाने वाले एनसीएलकर्मी का ईमान डोल गया और कबाड़  पार कराने की फिराक में लग गया काफी हद तक सफल भी रहा लेकिन सिक्योरिटी ने सूझबूझ के साथ रंगे हाथ धर दबोचा। 



मामला कुछ इस कदर है कि जयंत परियोजना के एनसीएल कर्मी एपी सिंह बीते 18 जून को जयंत परियोजना में बने खेल एकेडमी के साफ-सफाई के जुगाड़ से एकेडमी में पड़े कबाड़ को बिक्री करनें के फिराक में थें। लेकिन उनके अरमानों पर सिक्योरटी ने पानी फेर दिया। सिक्योरिटी इस्पेक्टर सत्येंद्र पाण्डेय ने रंगे हाथ बॉर्डर पर पकड़ कर अधिकारियों को सूचित किया। लेकिन स्टाफ आफिसर पर्सनल ने कबाड़ को स्टोर करवाने की बात कर कार्यवाही की बात नही की जिससे तरह,तरह की चर्चायों हो रही है।


एसओपी साहब एनसीएल कर्मी पर इतनी मेहरबानी क्यों..?


एक आम आदमी अगर एनसीएल खदानों में चोरीं करते हुए पकड़ा जाता है तो सिक्योरटी कार्यवाही के लिए पुलिस को सुपुर्द करती है।लेकिन एनसीएल कर्मी के लिए लगता है कोई कानून नहीं है..? एनसीएल कर्मी की करतूत को लेकर जयंत sop श्री खान से दूरभाषा से सम्पर्क किया तो उन्होंने सीधा बात इंकार कर दिया। जिससे साफ जाहिर  होता है कि एसओपी साहब की पूरे मामले में भूमिका संदिग्ध है । एसओपी साहब से सीधा सवाल यह है कि बॉर्डर पर पकड़ने जाने की फ़ोटो, वीडियो और इस मामले से जुड़े तमाम लोगों से बातचीत का ऑडियो भी गलत है..? समझ नहीं आता कि एसओपी साहब ऐसे एनसीएल कर्मी को क्यों संरक्षण देते नजर आ रहे हैं..? हालांकि पूरे मामले की यदि निष्पक्ष जांच की जाए तब दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा।


 



किसके परमिशन से कबाड़ हो रहा था पार


एनसीएल में कबाड़ को हटाने के लिये टेंडर की प्रक्रिया की जाती है। जिससे कागजी,प्रक्रिया के तहत कार्य होता है। लेकिन एनसीएल कर्मी एपी सिंह को एनसीएल की सम्पत्ति को बिक्री करनें का कौन आदेश दिया था। यदि आदेश नहीं था तो फिर अपनी मर्जी से कैसे कबाड़ बेचने के फिराक में लगा था। पूरे मामले की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए और जांच में जो भी दोषी पाया जाए उसके खिलाफ कार्यवाही सुनिश्चित होनी चाहिए। हालांकि इस पूरे मामले के बाद एसओपी खान की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लगे हैं। हालांकि सवाल उठना लाजमी है क्योंकि पूरे मामले को बखूबी जानने के बावजूद भी यह एसओपी साहब अंजान बने बैठे हैं।


 


शेष अगले अंक में..


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