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बेरोजगार सिंगरौली.. कही नक्शलवाद की भेट न चढ़ जाय -अरविंद

अनोखी आवाज सिंगरौली। सन 1960 में रिहन्द डैम का निर्माण इस उम्मीद से हुआ था की आस - पास के जिले सोनभद्र - सिंगरौली में एक हरित क्रांति आएगी, क़ृषि में बढ़ावा होगा, सभी लोग खुशहाल होंगे, सुखी होंगे, अच्छा ही अच्छा होगा। 



इसके निर्माण में हज़ारों गाँव जलमग्न हो गये लोग विस्थापित हो गए, जमींदार भूमिहीन हो गए, घर बनाने के लाले पड़ गए...लोगों ने अपना बसेरा थोड़ा आगे खिसकाया पर उन्हें क्या पता था की जहाँ वे अपना पैर जमा रहे हैँ वहाँ-वहाँ कोयला निकल जाएगा और पावर प्लांट लग जाएंगे । हुआ ऐसा ही की रेनुकूट से लेकर, अनपरा, ककरी, बीना, शक्ति नगर, विंध्यनगर, शाशन तक कोयला, ऊर्जा का विस्तार हुआ और खेल चालू हो गया और एक बार फिर लोगों का घर औने-पौने कौड़ियों के भाव छीन लिया गया। 


 आज बार-बार विस्थापन का दंश झेल रहे, बेघर, भूमिहीन, बिस्थपित ठेकेदारी में नौकरी मांगते कतार में धक्के खा रहे हैं, जिससे यहां के व्यवस्था, प्रबंधन, शासन - प्रशासन पर बड़ा सवालिया निशान है, और लज्जा से सिर झुकाने वाले दृश्य है। 


जिसने अपनी सभ्यता, संस्कृति घर - जमीन, देश को समर्पित कर दिया बदले में, बेरोजगारी, की कतार पर धक्का के शिवा शायद कुछ भी हासिल नहीं हुआ ....परियोजनाओं में कार्यरत , ठेकेदार, यहां के शासन - प्रशासन, नेताओं से मिलकर बेरोजगारी का उपहास उड़ाने में कोई कमी नहीं छोड़ रहे हैं भ्रष्टाचार - दलाली चरम पर है..अगर सही दिशा में प्रयास किया जाए तो


एनसीएल परीक्षेत्र में आउटसोर्सिंग में 11 -12 परियोजनाओं में कम से कम, 9-10 हजार लोगों को रोजगार दिया जा सकता है.... सभी पावर सेक्टर में ठेकेदारी में करीब 8000 लोगों को रोजगार दिया जा सकता है। अन्य कंपनियों में लगभग 4000 लोगो को रोजगार दिया जा सकता है ।करीब-करीब छोटे बड़े सभी में अगर व्यवस्था की जाए तो लगभग 22,000 लोगों को विस्थापितों को खुशहाल किया जा सकता है। श्रम कानून जिला कानून अगर ध्यान दे तो शायद अस्सी से नब्बे परसेंट बेरोजगारी दूर की जा सकती है, किंतु अफसोस बाहरी अफसर ठेकेदार सब मिलकर जिसका पहला हक है उसे किनारे कर बाहर से मजदूर ला कर काम चला रहे हैं सब गोलमाल कर के विस्थापितों की दुर्दशा कर रहे हैं l यहां के विस्थापित प्रभावित जो जहरीला पानी पी रहा है धुंआ ले रहा है विस्थापन का दंश झेल रहा है उसको एक वरीयता कार्ड क्यों नहीं बनता जिससे उसे नौकरी, शिक्षा, चिकित्सा में मदद मिले l आखिर कब तक सहेंगे... वह दिन दूर नहीं जब बेघर, भूमिहीन, बेरोजगार, बिस्थपित बन्दुक थाम लेंगे और सिंगरौली नक्सलवाद की भेंट चढ़ जाएगी।


 


अरविंद दुबे की कलम से 


 


(लेखक के अपने व्यक्तिगत विचार)